‘आज राजस्थानी साहित्य की स्थिति अच्छी नहीं, युवाओं को इससे जोड़ने की जरूरत’
जयपुर में स्टेशन रोड स्थित होटल आईटीसी राजपूताना में प्रभा खेतान फाउण्डेशन और ग्रासरूट मीडिया फाउण्डेशन की ओर से राजस्थानी साहित्यिक श्रृंखला आखर के तहत इस बार राजस्थानी भाषा के जाने-माने साहित्यकार नीरज दईया जयपुर के साहित्य प्रेमियों से रुबरु हुए.इस कार्यक्रम के दौरान राजस्थानी साहित्यकार मदनगोपाल लढ़ा ने नीरज दाईया के कृतित्व और व्यक्तित्व पर चर्चा की, जिसमें नीरज दईया ने अपने जीवन के अनछूए पहलुओं और साहित्यिक रचनाओं पर जयपुराइट्स से विस्तार से चर्चा की.राजस्थानी साहित्यकार नीरज दईया.
कार्यक्रम में नीरज दईया ने अपने कविताओं और रचनाओं का पठन भी किया. इस अवसर पर नीरज दईया ने कहा कि आज राजस्थानी साहित्य की स्थिति अच्छी नहीं है, जरुरत है युवाओं को राजस्थानी साहित्य से जोड़ने की है.उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा का साहित्य लोगों को अपनी कला-संस्कृति से जोड़ता है. युवाओं को प्रदेश की भाषा और संस्कृति से जोड़ने का कार्य केवल साहित्य ही कर सकते हैं इसलिए युवाओं में राजस्थानी साहित्य में रुचि पैदा करने की जरूरत है.यह तभी सम्भव है जब सरकार राजस्थानी भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करे. जब प्रदेश के सभी अंचलों में राजस्थानी भाषा पढ़ी जायेगी तभी लोग राजस्थानी भाषा और संस्कृति को जान सकेंगे.
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जयपुर में साहित्य प्रेमियों से रूबरू होंगे दइया
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बीकानेर | प्रभाखेतान फाउंडेशन और ग्रासरुट मीडिया फाउंडेशन की ओर से राजपुताना शेरेटन होल में आयोजित आखर कार्यक्रम…
बीकानेर | प्रभाखेतान फाउंडेशन और ग्रासरुट मीडिया फाउंडेशन की ओर से राजपुताना शेरेटन होल में आयोजित आखर कार्यक्रम में बीकानेर के कवि नीरज दइया साहित्य प्रेमियों से रूबरू होंगे। प्रमोद शर्मा के अनुसार दइया से युवा कथाकार मदन गोपाल लढ़ा राजस्थानी साहित्य के विविध आयामों पर चर्चा करेंगे। इस दौरान वे अपनी चुनिंदा रचनाओं का पाठ भी करेंगे। मुक्ति के सचिव राजेन्द्र जोशी के अनुसार दइया बीकानेर के पहले राजस्थानी लेखक हैं जिनका इस टॉक शो में कार्यक्रम होगा।
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सुकून देती है मातृ भाषा में अभिव्यक्ति
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मातृभाषामें अभिव्यक्ति सुकून प्रदान करती है। राजस्थानी विश्व की समृद्ध भाषाओं में से एक है जिसके संरक्षण विकास…
मातृभाषामें अभिव्यक्ति सुकून प्रदान करती है। राजस्थानी विश्व की समृद्ध भाषाओं में से एक है जिसके संरक्षण विकास हेतु संवैधानिक मान्यता अत्यंत आवश्यक है। यह कहना है राजस्थानी कवि-आलोचक डॉ नीरज दइया का। डॉ दइया रविवार को जयपुर के साहित्य प्रेमियों से रूबरू हुए। अवसर था प्रभा खेतान फाउंडेशन ग्रास रूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से राजपुताना शेरेटन होटल, जयपुर में आयोजित ‘आखर’ कार्यक्रम का। कार्यक्रम में डॉ. नीरज दइया से युवा कथाकार मदन गोपाल लढ़ा ने उनके लेखन प्रक्रिया पर बातचीत की। डॉ दइया ने राजस्थानी साहित्य के आलोचना, अनुवाद, कविता साहित्यिक पत्रकारिता के विविध आयामों की चर्चा की। लोगों से संवाद करते हुए उन्होंने अपनी सृजन प्रक्रिया के विविध पक्षों का खुलासा भी किया।। कार्यक्रम में डॉ. दइया ने अपने कविता संग्रह ‘साख’,‘देसूंटो’, ‘पाछो कुण आसी’, ‘उचटी हुई नींद’ से चुनींदा कविताओं का पाठ भी किया। उनकी एक कविता ‘राजस्थानी भासा म्हारै रगत रळियोड़ी है’ को श्रोताओं ने खूब सराहा। समारोह में वरिष्ठ कवि कथाकार नंद भारद्वाज, पत्रकार डॉ हरिमोहन सारस्वत, जोगेश्वर गर्ग, देवकिशन राजपुरोहित, अभिमन्यु सिंह, रजनी मोरवाल सहित कई साहित्यकारों, पत्रकारों पाठकों की भागीदारी रही। आगंतुकों का आभार प्रमोद शर्मा ने जताया।
डॉ. नीरज दइया से ’आखर’ शृंखला में हुई चर्चा
जयपुर/ 18 सितम्बर/ प्रभा खेतान फाउण्डेशन द्वारा ग्रासरूट मीडिया फाउण्डेशन के सहयोग से राजस्थानी साहित्य, कला व संस्कृति से रूबरू कराने के उद्देश्य से ’आखर’ नाम से शुरू की गयी पहल के अंतर्गत आज राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. नीरज दईया ने अपने विचारों और अनुभवों को साझा किया। इनसे चर्चा राजस्थानी साहित्यकार मदनगोपाल लढ़ा ने की।
लेखन में प्रवेश के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि घर के माहौल ने लेखन के प्रति आकृष्ट किया। इसलिये लेखन की वास्तविक शुरूआत कब हुई कहना मुश्किल हैं। लेकिन पहले कविेता लेखन प्रारभ्म किया। पहली पुस्तक कविता पर प्रकाशित हुई फिर लघुकथायें लिखने लगा। मेरी लघुकथायंे नियमित तौर पर पत्र पत्रिकाओं में छपने लगी और उन्हें काफी प्रतिसाद मिला। कुछ लोग तो यह भी कहने लगे कि मेरे पिताजी सायर जी अपने बेटे के नाम से लिखते हैं। सहीं मायनों में मेरे लिये तो वो ही सबसे बड़ी प्रशंसा थी।
कविता लेखन के संबंध में डॉ. नीरज दईया ने बताया कि राजस्थानी में नवीन कविताओं का अभाव रहा हैं। पारम्परिक तौर पर यहां छन्द को ही ज्यादा मान मिला हैं। मेरे अग्रजों ने भी यह बताया की कविताओं की रचना छंद में ही उचित रहती हैं पर मेरा यह मानना था कि कविता बदल रहीं हैं। अपनी पुस्तक शबद नाद में 24 भारतीय भाषा के लेखकों की रचनाओं का राजस्थानी अनुवाद प्रस्तुत किया गया। इसमें नयी कविताओं को समझनें का प्रयास किया गया हैं। डॉ. नीरज दईया ने नंद किशोर आचार्य, निर्मल वर्मा और अमृता प्रीतम की रचनाओं के अनुवाद के अनुभवों को भी साझा किया और बताया कि अनुवाद में अनुवादक के साथ मूल लेखक की संतुष्टी बड़ी बात हैं अनुवाद करते समय अनुवादक को स्वंय का आवरण छोड़कर लेखक की तरह सोचना होता हैं।
डॉ. नीरज दईया का मानना हैं कि राजस्थानी में आलोचना में सीमित काम ही हो पाया हैं जिसके प्रसार की जरूरत हैं अपनी पुस्तक बिना हासलपाई में उन्होंने मुख्यधारा से बाहर 25 कहानीकारों को समझने की कोशिश की गयी हैं जिसमें भी बहुत से कहानीकार छूट गये हैं। राजस्थानी में लगभग 100 से ज्यादा कहानीकार हैं जिनकी अपनी अपनी विशेषतायें हैं अतः कई आलोचको की जरूरत हैं। राजस्थानी रचना की आलोचना अगर राजस्थानी, हिन्दी और अंग्रेजी में होगी तो राजस्थानी की पहुंच दूर तक जायेगी। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपनी कविताये भीत, बीरबल की खिचड़ी आदि का पाठन भी किया।
श्री सीमेंट द्वारा समर्थित इस कार्यक्रम का आयोजन होटल आईटीसी राजपुताना में आयोजित किया गया। आखर के पूर्व कार्यक्रमों में राजस्थानी के कवि, आलोचक और कथाकार डॉ. आईदान सिंह भाटी, डॉ. अरविंद सिंह आशिया और रामस्वरूप किसान के साथ चर्चा आयोजित की जा चुकी हैं।
डॉ. नीरज दईया एक परिचय:
राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. नीरज दइया का जन्म 22 सितम्बर, 1968 के दिन हुआ। भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के बापजी चतुरसिंहजी अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित डॉ. नीरज दईया की रचनाओं में भोर सूं आथण तांई (लघुकथा संग्रह), साख (कविता संग्रह), देसूंटो (लांबी कविता), कागद अर केनवास (अमृता प्रीतम री पंजाबी काव्य-कृति का अनुवाद), कागला अर काळो पाणी (निर्मल वर्मा की हिंदी कहानी संग्रह का अनुवाद), ग-गीत (मोहन आलोक की राजस्थानी कविता संग्रह का हिंदी अनुवाद), मोहन आलोक की कहानियां (संचौ), आलोचना रै आंगणे (राजस्थानी आलोचना), कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां (संचौ), देवां री घाटी (भोलाभाई पटेल रै गुजराती यात्रा-संस्मरण का अनुवाद), जादू रो पेन (बाल-साहित्य कहाणियां) सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त डॉ. नीरज दइया माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान,अजमेर के राजस्थानी पाठ्यक्रम विषय -समिति के संयोजक और राजस्थानी भाषा , साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के सदस्य रह चुके हैं।
प्रभा खेतान फाउंडेशन व ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से गुलाबी नगरी में “आखर- 4” कार्यक्रम रविवार 18 सितम्बर 2016 के समाचार