डॉ. नीरज दइया कवि, कथाकार, अनुवादक, आलोचक आदि कई विधाओं के साहित्यकार हैं। उसके निरन्तर व्यग्यों का आनंद ले रहा हूँ। उसका व्यंग्यकार रूप तो इतना सटीक है कि क्या कहूँ। वह क्या लिखता है, कैसा लिखता है इस बात का आप अनुमान लगा सकते हैं कि उसके व्यंग्य पढ़ने वाले अपने आप को उसके निशाने पर खुद को मानते है। उसके व्यंग्यो के बारे में लगता है,, कही पे निगाहें कहीं पै निशाना। उसके व्यंग्य पता नहीं कब किस को किस रूप में चुभ जाए। बहुत नुकीले होते हैं। रातनीति-पत्रकारिता-प्रसाशन-व्यवस्था-साहित्यकार… आदि-आदि उसके व्यंग्यबाणों से निरंतर बिंध रहे हैं। ऐसे जानदार व्यंग्यों के व्यंग्यकार नीरज दइया को बधाई और शुभकामनाएं।
देवकिशन राजपुरोहित
(वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार)
- “समदीठ” (आलोचना पोथी) कुंदन माली
- “इंधरधनख” (आलोचना पोथी) चेतन स्वामी
- “साखीणी कथावां” (कहाणी संग्रै) संपादक- मालचंद तिवाड़ी, भरत ओळा
- “राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां” (संपादक- श्याम जांगिड़)
- गंगानगर जिलै रौ राजस्थानी साहित्य
- कविता रै उणियारै मांय बीकानेर जिलै री ओप
- हिंदी कहानी : प्रेम से मिलता जुलता कोई शब्द
जागती जोत (संपादक : रवि पुरोहित) सितम्बर, 2013 में प्रकाशित दो राजस्थानी कविताएं-
“माणक” (राजस्थानी मासिक पत्रिका) में प्रकाशित
हिंदी कविताएं
प्रेम कविताएं-1 डेली न्यूज के हम लोग परिशिष्ट में